Date: 30 June 2024
Time : 2 pm- 4 pm
Location: कासिमपुर, भागलपुर
Name of Event/Activity : संविधान के रस्ते,आजादी मूल्य के वास्ते
Type of Activity : विमर्श
30 जून 2024- “संविधान के रास्ते, आजादी मूल्य के वास्ते” विषयक विमर्श का आयोजन कासिमपुर गोराडीह में किया गया। इस विषय पर अपने विचार रखते हुए संस्कृति कर्मी उदय ने कहा कि आज हम अंग्रेजों से आजाद हैं। आजादी के पूर्व हम अंग्रेजों के और धार्मिक, सामाजिक कट्टरपंथी विचारधारा के भी गुलाम थे। आंदोलनकारी को सिर्फ अंग्रेजों से ही आजादी नहीं चाहिए थी बल्कि उन पुरातन पंथी और प्रतिगामी विचारधारा से भी चाहिए थी सैकड़ो वर्षों तक भारत के लोगों को गुलाम बनाए रखा। 1857 की क्रांति में जब विभिन्न धर्म-संप्रदाय के राजा रजवाड़े ने हिस्सा लिया तो उनके अंदर एकता के भाव जागृत हुए। पर इस आंदोलन में आम लोगों की भागीदारी खुलकर नहीं हो पाई। क्योंकि लोगों को लगता था कि यह उनकी लड़ाई नहीं बल्कि राजा रजवाड़ा की लड़ाई है। अंग्रेजों के जाने के बाद देसी राजा उन पर शासन करेंगे। परंतु महात्मा गांधी के आंदोलन में आते-आते भारत में आजादी को व्यापक अर्थो और मूल्यों के साथ लिया जाने लगा। गांधी, सुभाष, भगत सिंह, नेहरू, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, खान अब्दुल गफ्फार खान, सरोजिनी नायडू तरीके नेताओं ने आजादी के व्यापक मूल्यों को आत्मसात करते हुए जन-जन के आजादीकी बात की। इन्होंने आम लोगों को समझाया कि आजादी का मतलब बराबरी, न्याय, लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, समाजवाद और सभी का सम्मान है। फलतः देश के विभिन्न प्रांतो, क्षेत्रों, नस्लों, धर्मों के लोगों ने मिलकर एक साथ आजादी के आंदोलन शुरू किया। पीस सेंटर परिधि के संयोजक राजीव कुमार सिंह ने कहा कि आजादी आंदोलन में शामिल हजारों लाखों लोगों का सपना था कि जब देश आजाद होगा तो देश में लोकतंत्र, समाजवाद, सबको न्याय, सबको आगे बढ़ने का समान अवसर और सबको गरिमा पूर्ण जिंदगी जीने का मौका मिलेगा। अगर हम जाति धर्म या नस्ल के आधार पर अपने को श्रेष्ठ और दूसरे को कमतर समझेंगे तो यह आजादी के लिए सब कुछ न्योछावर कर देने वाले सपूतों के सपनों की हत्या होगी। आज कुछ लोग धर्म के आधार पर भेदभाव कायम कर कुछ समुदाय को प्रताड़ित करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे लोग देश के गद्दार हैं। अगर हम देश के सभी नागरिकों को सामान समझ कर बिना धार्मिक, जातीय, या नस्लीय भेद भाव के आगे बढ़ाने के, बराबरी के, न्याय के और सम्मान पूर्ण जीवन जीने के लिए काम नहीं करते हैं तो यह आजादी आंदोलन के सपूतों के साथ धोखा होगा। समाजकर्मी जय नारायण और मुखिया ने भी अपने वक्तव्य ने कहा कि आज जो सुविधा, शिक्षा पाने का अधिकार, इज्जत के साथ जीने का अधिकार मिला है वह आजादी आंदोलन के इन्हीं मूल्यों के कारण मिला है। अगर हम लोग जाति और धर्म के नाम पर विभेद करेंगे तो हमारा देश पिछड़ता चला जाएगा और हम अपने अधिकारों के लिए भी तरस जाएंगे। हर वक्त हमें चौकस चौकन्ना रहना है ताकि हमारे बच्चे साम्प्रदायिकों हाथों में पड़कर अपराधी न बन जाए।
Date : 25-27 June 2024
Time: 10am-3pm
Location: तारापुर, मुंगेर
Name of Event/Activity: “कार्टून द्वारा समाज परिवर्तन”
Type of Activity : कार्यशाला
कार्टून द्वारा समाज परिवर्तन – मुंगेर जिला के तारापुर में दिशा विहार संस्था के सहयोग से तीन दिवसीय कार्टून कार्यशाला का आयोजन हुआ। कार्टून कॉमिक्स कार्यशाला का प्रशिक्षण पीस सेंटर परिधि के संयोजक राजीव कुमार सिंह ने किया। कार्टून कार्यशाला का केंद्रीय विषय था कार्टून द्वारा समाज परिवर्तन। इस अवसर पर लगभग 40 बच्चे बच्चियों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया। कार्यशाला के दो प्रमुख सत्र थे- बौद्धिक सत्र और कार्टून स्किल सत्र। बौद्धिक सत्र में मुख्यतः समाज में व्याप्त समस्याओं की खोज करना और ठीक-ठाक पहचान कर उसके निराकरण हेतु कथा-कहानियों का निर्माण करना था। बौद्धिक सत्र की शुरुआत बच्चों द्वारा उसके इर्द-गिर्द घटने वाली घटनाओं को सुनने से हुआ। बच्चों द्वारा कहानियों के सुनाए जाने के बाद उनमें से कुछ कहानी का चयन आगे की चर्चा के लिए किया गया। बच्चों ने अपने इर्द-गिर्द घटनाओं में महिला हिंसा, जाती है भेदभाव और सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को छोटे-छोटे कहानियों में बांटा। इसके बाद कहानियों के अनुसार पत्रों का निर्माण, कथानक को आगे बढ़ना, कहानी में परिवर्तनकारी तत्व और अंत में संदेश को रेखांकित करने वाले डायलॉग लिखे गए। बौद्धिक सत्र में ही कम से कम शब्दों में समझ होने लायक डायलॉग बनाना, उस संवाद में द्वन्द पैदा करना, कहानी को बढ़ाने के लिए अलग से संवाद लिखना आदि सिखाया गया। दूसरा खंड कार्टून कॉमिक्स स्किल निर्माण का था जिसमें बच्चों ने अलग-अलग पत्रों का निर्माण करना, वस्त्र और केश विन्यास द्वारा पत्रों में अंतर पैदा करना, मोटे और पतले काली लाइनें द्वारा हल्के और का गहराई का भाव पैदा करना, दूर नजदीक का भाव, चेहरे के एक्सप्रेशन, एक्शन आदि के लिए लाइनों का उपयोग सीखलाया गया। इसके बाद सभी बच्चों ने अपनी कहानी अनुसार पत्रों का निर्माण और पात्रों की भिन्नता पैदा करते हुए रोचक और समाज को जागरूक करने वाले कॉमिक्स का निर्माण किया। इन कार्टून कॉमिक्स का उद्देश्य समाज परिवर्तन हेतु इसका उपयोग करना था। इन सांस्कृतिक गतिविधियों द्वारा बच्चों के बौद्धिक विकास और देश के साझी संस्कृति की समझ बढ़ानाउद्देश्य था।
Date: 15 June 2024
Time: 1pm- 3pm
Location : आदर्श विद्या मंदिर , भागलपुर
Name of Event/Activity : कला और संस्कृति-एकता का ताना-बाना
Type of Activity : संगोष्ठी
आदर्श विद्या मंदिर, भागलपुर में “कला और संस्कृति- एकता का ताना-बाना” विषय पर चर्चा गोष्ठी का आयोजन किया गया। स्वागत करते हुए डॉ शीलम प्रियम ने पीस सेंटर परिधि शुरुआती समय से ही संस्कृति के व्यापक समझ को समझ में फैलने के लिए प्रयासरत रहा है। एक और जहां संस्कृति के नाम पर गिरना फैलाने की कोशिश हो रही है वहीं परिधि के साथी लगातार संस्कृति को मेलजोल और समन्वय की दृष्टि से देखते, समझते और समझाते रहे हैं। आज संस्कृति के नाम पर हमें विभेदकारी बनाने की कोशिश की जाती है। सांस्कृतिक शुद्धता जैसी अवधारणा हिटलर के विचारों की तरह है जो खुद को श्रेष्ठ और दूसरे को टच मानकर उसके साथ भेदभाव और उत्पीड़न करना सिखलाता है। पीस सेंटर परिधि के संयोजक राहुल ने अपनी बात रखते हुए छात्रों को बतलाया कि दुनिया की कोई भी संस्कृति आदान-प्रदान से बनती है। इसलिए इसके बनने की प्रक्रिया बहुत ही धीमी और अदृश्य होती है। इसे भौगोलिक परिवेश भी निर्धारित करता है। मरुस्थलीय क्षेत्र में पानी की बहुत महत्ता होती है इसलिए पानी के इर्द-गिर्द कई रिचुअल बन जाते हैं। नदी किनारे रहने वालों में नदी को लेकर और जंगल में रहने वालों की संस्कृत में जंगल को लेकर कई रिचुअल होते हैं। यह रिचुअल धार्मिक नहीं है बल्कि बाद में इसे धर्म ने अपने अंदर स्वीकार कर लिया होता है। किसी भी समाज का ताना-बाना कला और संस्कृति होता है। इस मौके पर भागलपुर की लोक चित्रकला मंजूषा की कलाकार कृषिका गुप्ता ने लोक चित्र के विश्लेषण करते हुए कहा कि साझी संस्कृति का एक बेहतरीन नमूना लोक कला होती है। लोक कला में आसपास की हर संस्कृतियों का समावेश देखने को मिलता है। पश्चिम बंगाल के कालीघाट पट्ट चित्र के कलाकार हिंदू भी है और मुसलमान भी। दोनों हिंदू देवी देवताओं के चित्र बनाते हैं और इस पर आधारित गाथाओं का भी पाठ करते हैं। उसी प्रकार भागलपुर की लोक चित्रकला मंजूषा पेंटिंग जो कि बिहुला विषहरी, शिव और नागकन्या विषहरी की गाथा पर केंद्रित है, में भी पठान चौकीदार का जिक्र है। शायद यह पात्र मुगलों के आने के बाद कहानी में जुड़ गया होगा। लोक कला हमेशा प्रवाह मां होती है और हर कालखंड की खासियतों को साथ लिए चलती है। यही साझापन कला को गतिशील रखता है और समाज को जीवंत भी। भारतीय शास्त्रीय संगीत को समृद्धि करने में ईरानी कला और संगीत का बड़ा योगदान रहा है। सरोद, सितार, तबला आदि वाद्य यंत्र इसी सांस्कृतिक समन्वय का फल है जो आज भारतीयता की पहचान बन गई है। इस प्रकार कई तरह के पहनावे की चीजें हमने भारत के बाहर की दूसरी संस्कृति से लिया है जिसे अब अपना अभिन्न हिस्सा मानने लगे हैं। कोई भी समाज तभी आगे बढ़ता है, तरक्की करता है जब वह सांस्कृतिक समन्वय और साझापन के साथ चलता है।