Date: 20 February 2025
Time: 10 am – 1 pm
Location : बदालीचक , भागलपुर
Name of Event/Activity : सामाजिक न्याय दिवस
Type of Activity : संवाद
दिनांक 20 फ़रवरी 2025 को सामाजिक न्याय दिवस के अवसर पर बदालीचक गोराडीह में संवाद का आयोजन हुआ। इस अवसर पर अपनी बात रखते हुए सामाजिक कार्यकर्ता उदय ने कहा कि भारतीय समाज में सामाजिक न्याय बहुत बड़ा मुद्दा रहा है। सामाजिक न्याय का अर्थ है समाज में कुरीति, परंपरा, धर्म आदि के नाम पर नस्लीय, जातीय या लैंगिक भेदभाव का विरोध व समता के लिए प्रयास। आजादी के बाद 90 के दशक में जनता सरकार, वीपी सिंह और लालू यादव ने सामाजिक न्याय के मुद्दे को जोर-जोर से उठाया था। परंतु इसकी शुरुआत भारतीय समाज में बुद्ध कल से ही देखने को मिलती है। बाद के समय में कबीर,रैदास, गुरु नानक, दादू, नामदेव, बसबन्न आदि ने भी सामाजिक न्याय की बात की। यह अलग बात है कि सामाजिक न्याय नाम की कोई शब्दावली नहीं थी। सामाजिक न्याय के लिए संयुक्त राष्ट्र में 1995 में बहस शुरू हुई, 2009 में इसे महत्वपूर्ण मानते हुए 20 फरवरी को सामाजिक न्याय दिवस मनाने की शुरुआत हुई । समाज में व्याप्त गैर बराबरी को दूर करने का यह संकल्प दिवस है। राहुल ने अपनी बात रखते हुए कहा कि किसी भी सभ्य समाज के लिए न्याय एक महत्वपूर्ण पहलू है। वहां न्याय पाना अधिक कठिन और चुनौती पूर्ण हो जाता है जहां सामाजिक या धार्मिक मान्यताओं के कारण गैर बराबरी या उत्पीड़न हो। सामाजिक धार्मिक स्तर पर व्याप्त कुरीतियों से लड़ना भी बहुत कठिन होता है इसलिए विश्व समाज को लगा कि सामाजिक न्याय के लिए अलग से पहल करने की जरूरत है। महिला पुरुष समता की बात हो, वर्ण भेद हो या फिर उम्र के आधार पर भेदभाव.. इसे हमारा समाज गंभीरता से नहीं लेता है। मानवीय चेतना के विकास के साथ ही हमने समाज में व्याप्त इन कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाना शुरू किया और आज पिछड़े, समाज के अधिकार की बात कर रहे हैं। जब तक लड़कियों को लड़कों के बराबर संपत्ति, समाज और राजनीति में अधिकार नहीं मिल जाता तब तक समता की बात कैसे की जा सकती है ? लिंग भेद, जाति भेद, वर्ण भेद, नस्ल भेद आदि का खात्मा उन्नत समाज की पहचान है। तारा और पूजा कुमारी ने लड़कियों की शिक्षा पर जोर देते हुए कहा कि अगर लड़कियां पढ़ेगी तो समता और बराबरी जल्दी लाई जा सकती है। जय नारायण ने जाति भेद को उठाते हुए कहा कि वर्षों से हमारे समाज ने जाति के आधार पर संपत्ति, शिक्षा और सम्मान में गैर बराबरी पैदा की है. रामचरित्र यादव ने वृद्धो के साथ होने वाले भेदभाव को उठाया.
Date : 25 February 2025
Time: 9am -4pm
Location: कलाकेन्द्र, भागलपुर
Name of Event/Activity: “आजादी आंदोलन की विरासत : संवैधानिक मूल्य ”
Type of Activity : संवाद
25 फरवरी 2025 को कला केंद्र, भागलपुर में पीस सेंटर, परिधि द्वारा एक संवाद का आयोजन हुआ| संवाद का विषय था आजादी आंदोलन की विरासत : संवैधानिक मूल्य . क्या में बतौर मुख्य वक्त मुंबई से चलकर आए इरफान इंजीनियर थे . बतौर विशिष्ट अतिथि पुणे से आई नेहा धबाड़े और डॉ प्रो मनोज कुमार थे. कार्यक्रम का संचालन उदय ने किया. अपनी बातें रखते हुए इरफान इंजीनियर ने कहा कि आजादी आंदोलन की पहली लड़ाई अठारह सौ सत्तावन में हम असफल हो गए . उस लड़ाई का उद्देश्य अंग्रेजों को हटाकर पुनः राजे राजबाड़ों का राज लाना था . 1857 की असफलता के बाद जो आजादी की लड़ाई लड़ी गई उसमें दो तरह के राष्ट्रवाद की बात उभरी. तिलक ने कहा कि भारत एक बनता हुआ राष्ट्र है, जबकि सावरकर ने भारत को हिंदू राष्ट्र से परिभाषित कर कहा कि भारत प्राचीन काल से ही एक राष्ट्र है. सच्चाई ये है कि राष्ट्रवाद एक नया विचार था जो 18 वीं सदी में यूरोप में उभरा था . राष्ट्रवाद 1789 के फ्रांसीसी क्रांति से दुनियां में फैला है. 18 57 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद आजादी का आंदोलन राष्ट्रीय आंदोलन बना , जिसमें विभिन्न समुदायों अंतिमजन , क्षेत्र विशेष के मुद्दे और हाशिए पर पड़े लोगों के मुद्दे जुड़े . संविधान में यही मूल्य दृष्टिगोचर होता है . आजादी आंदोलन दरम्यान सभी के समता , सभी की आजादी , अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात कही गई थी जो संविधान में शामिल हुआ . बुद्ध से लेकर बाद के भक्ति और सूफी संतों के विचार संविधान में शामिल हुए . संविधान ने सभी धर्मों के नैतिक मूल्यों को अपनाया . नेहा धबाड़े ने कहा कि महिलाओं की बराबरी संविधान की देन है न कि किसी धर्म की .आज भी इसकी जरूरत बनी हुई है . अल्पसंख्यक अपने धर्म संस्कृति और रीतिरिवाज़ों को कितना इंजॉय करता यह किसी भी देश के लोकतांत्र का इंडिकेटर है. आज अपनी मर्जी का कोई खाना भी नहीं खा सकता इससे संविधान संकट में है. डॉ मनोज ने कहा कि तथाकथित धरमनिर्पेक्षतावादियों और प्रगतिशीलतावादियों की नाकामी के कारण संविधान विरोधी तत्व बढ़े हैं | संचालन करते हुए उदय ने कहा कि संविधान ही हिंदू धर्म को भी बचाने की जरूरत है . आज दो तरह के हिंदू हैं शिष्ट हिंदू और लंपट हिंदू . हिंदुओं के लंपटीकरण के प्रोजेक्ट को विफल करना होगा. ललन ने विश्व भर में बढ़ रहे दक्षिणपंथ और पहचान की राजनीति की ओर इशारा किया और कहा कि मुनाफावादी और नफ़रतवादी का चेहरा एक हो गया |
Date: 28 February 2025
Time : 8 am-10am, 2- 4 pm
Location: तरछा, गोराडीह, भागलपुर
Name of Event/Activity : राष्ट्रीय विज्ञान दिवस
Type of Activity : संवाद और प्रदर्शन
28 फ़रवरी 2025 को तरछा गोराडीह में राष्ट्रीय विज्ञान दिवद के अवसर पर “चमत्कार नहीं विज्ञान” विषयक कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इस अवसर पर पीस सेंटर परिधि के संयोजक राहुल ने विज्ञान के कई आश्चर्यचकित कर देने वाले खेलो का प्रदर्शन किया जिसका उपयोग झाड़ फूंक करने या चमत्कार दिखाने के लिए किया जाता है। जल छिड़क कर आग लगाना, पानी का रंग बदलना, जिव्हा के आर पार त्रिशूल निकालना, हवन कुंड में बिना माचिस के आग लगाना जैसे खेल देखकर लोग चमत्कृत हो रहे थे। प्रदर्शन के बाद राहुल ने अपनी संबोधन ने कहा है जब हम विज्ञान को नहीं जानते तो वही हमारे लिए चमत्कार हो जाता है। इस दुनिया में चमत्कार नाम की कोई चीज नहीं होती, किसी घटना के वैज्ञानिक कारण को नहीं जानते तो हम उसे चमत्कार समझ लेते हैं। इसी बात का फायदा उठाकर ओझा- गुनी या औघड़ हमारा फायदा उठाता है। अगर हम शिक्षा और विज्ञान के साथ चलेंगे तो कोई भी अंधविश्वास की ताकत हमें मूर्ख नहीं बना पायेगा। जय नारायण ने इस दिन के महत्व को रेखांकित करते हुए बताया कि आज के दिन को भारत ने राष्ट्रीय विज्ञान दिवस घोषित किया है क्योंकि आज के ही दिन 28 फरवरी 1928 को चंद्रशेखर वेंकटरमन ने रामण प्रभाव की घोषणा की जिसके लिए उन्हें 1930 में नोबेल पुरस्कार मिला। समाज को वैज्ञानिक सोच आगे बढ़ता है और डाक की अनुशी विचार पीछे ले जाता है। आज फिर से डाक्यानुसी विचार अलग-अलग रूपों में प्रभावित होने की कोशिश कर रहा है। इन विचारों को थोप कर हमारे वैज्ञानिकता और प्रगतिशीलता को कुंद करने की कोशिश हो रही है। समाज में जितना अधिक अंधविश्वास बढ़ेगा उतना ही अधिक उन्माद भी बढ़ेगा। अंधविश्वासी और उन्मादी समाज अपना ही अहित करता है। इस अवसर पर गांव के शिक्षक धनंजय कुमार ने कहा कि बच्चों में वैज्ञानिक सोच और समझ बढ़ाना अत्यावश्यक है अन्यथा किसी भी कारण को रखने की जगह सामाजिक मान्यताओं के आधार पर मानने लग जाएंगे। विज्ञान कहता है कि हम सभी होमो सेपियंस हैं अर्थात समान हैं परंतु धार्मिक मान्यता हमें अलग-अलग जाति में विभक्त करता है। यह विभाजन हमारे बीच टकराव भी पैदा करता है। वैज्ञानिक और तथ्य परक बात हमें अधिक स्थिर और प्रगति पथ पर ले जाने वाला साबित होता है। देश की उन्नति और एकता वैज्ञानिक सोच से ही संभव है।
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