Date: 20-21 July 2024

Location : बोध गया , गया, बिहार

Type of Activity :  सांस्कृतिक भ्रमण एवं संवाद

युवा क्षमता वर्धन कार्यशाला 20-21 जुलाई 2024 बोधगया,बिहार – संवैधानिक मूल्य, समता, लोकतंत्र और विविधता विषय पर दो दिवसीय युवा क्षमता वर्धन कार्यशाला का आयोजन बोधगया में किया गया। सी.सी एफ डी के सहयोग से आयोजित कार्यशाला में 30 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया। कार्यशाला के पहले दिन सभी प्रतिभागी सामूहिक रूप से बोधगया और आसपास के धार्मिक स्थलों के भ्रमण पर निकले। 15-15 सदस्यों के समूहों को दो लोगों ने लीड किया। एक समूह को सामाजिक कार्यकर्ता निराला और दूसरे समूह को इस केंद्र परिधि के संयोजक राजीव कुमार सिंह मैं लीड करते हुए बौद्ध और हिंदू धर्म स्थलों का परिभ्रमण कराया। परिभ्रमण के बाद संध्याकालीन फीडबैक सत्र में सभी प्रतिभागियों ने अपने-अपने विचार रखे। कोमल ने कहा -बौद्ध मंदिर भ्रमण के दौरान हमने पाया कि अलग-अलग देशों के बौद्ध मंदिर के डिजाइन अलग-अलग हैं, उसमें चित्रित किए जाने वाले पत्र भी बहुत अलग-अलग तरह के मिले, जबकि सभी एक ही धर्म से जुड़े हुए हैं। सुभाष देव ने बताया कि मंदिर निर्माण की वास्तु शैली भी बहुत अलग-अलग तरह की मिली। वही महा बोधि मंदिर  का वास्तु शिल्प भारतीय मंदिरों की तरह था। इससे हमें यह पता चलता है कि धर्म चाहे जो भी हो स्थानीयता उसे प्रभावित करती है और अपने अनुसार उसमें परिवर्तन लाती है। अंबेडकर विचार विभाग की स्मिता ने बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों का जिक्र करते हुए कहा कि चांद के स्तर पर हम जानते हैं कि बुद्ध ने कर्मकांड और पुरोहित वाद का विरोध किया था पर आज मंदिर में बहुत सारे ऐसे बौद्ध भिक्षु मिले जो ब्राह्मण पुरोहितों की तरह आशीर्वाद देते और पैसा मांगते थे। जो बौद्ध धर्म के मूल स्वरूप से बिल्कुल भिन्न दिखा। राजीव कुमार सिंह ने प्रतिभागियों का ध्यान आकृष्ट कराते हुए कहा कि महाबोधि मंदिर के ठीक सामने के छोटे मंदिर में स्थापित बुद्ध की पांच मूर्तियां को पांच पांडवों का मूर्ति बाता कर हिंदू  पुरोहितों द्वारा कब्जा कर लिया गया है। इस क्षेत्र में ऐसे सैकड़ो बौद्ध स्थल है जिस पर हिंदू धर्मावलंबियों का कब्जा है और बुद्ध की मूर्ति को अलग-अलग देवी देवता का नाम दे दिया गया है। ऐसे कृत्य पूरे बिहार के अलग-अलग क्षेत्र में देखने को मिलेंगे। मानव इतिहास में यह कोई नई बात नहीं है। बौद्ध धर्म के पहले भी बहुत सारे धर्म थे जिसे या तो नष्ट कर दिया गया, या स्वतः नष्ट हो गए या उसके मानने वालों ने अपना धर्म परिवर्तन कर लिया। धर्म कभी भी अस्थाई  नहीं रहा है। एक समय बिहार, झारखंड,उड़ीसा के पूरे भूभाग पर बौद्ध धर्म ही माना जाता था और आज हम लोग अलग-अलग धर्म मान रहे हैं इसका मतलब यह हुआ कि हमारे पूर्वज कभी बौद्ध रहे होंगे और उनके भी पूर्वज कोई और धर्म मान रहे होंगे । स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता कारू भाई ने बोधगया के इतिहास पर अपनी बात रखते हुए कहा कि बोधगया में अलग-अलग राजाओं द्वारा बौद्ध धर्म के विकास प्रचार प्रसार के लिए काम किए गए पर लगभग हजार वर्ष पूर्व शंकराचार्य के आंदोलन में बोधगया और बिहार के सभी क्षेत्रों में बौद्ध मंदिरों और बौद्ध धर्म के अनुयायियों को तहस-नहस किया गया। सिर्फ बोधगया में नष्ट करते हुए 1000 मंदिरों का निर्माण कराया गया। महाबोधि मंदिर को आर्थिक मदद करने वाले राजा-राजाओं के साथ चर्चा कर उसके आर्थिक मदद को रुकवा दिया गया और बोधगया में एक विशाल हिंदू मठ का निर्माण किया गया। यह मठ कई हजार एकड़ भूमि का मालिक था और आज भी महाबोधि मंदिर परिसर में अवस्थित है। जयप्रकाश नारायण की प्रेरणा से हम लोगों ने इस मठ की जमीन पर आम लोगों के कब्जे के लिए बोध गया भूमि आंदोलन शुरू किया। लंबे संघर्षों के बाद बोधगया मठ की हजारों एकड़ जमीन उसके जोतदारों में वितरित की गई। आज भी बोधगया के कई बौद्ध स्थलों पर हिन्दू संगठनों का कब्ज़ा है।

 कार्यशाला के दूसरे दिन 21 जुलाई को चर्चा की शुरुआत संवैधानिक मूल्य से हुई। अपनी बात रखते हुए उदय ने कहा कि  संविधान में हमारे देश के महापुरुषों, कबीर, नानक, रैदास आदि के विचारों को शामिल किया गया है। आजादी की लड़ाई के समय भारत नामक यह भूभाग वाला देश था ही नहीं। अंग्रेजों से आजादी के बाद हम एक देश बने इस शर्त पर कि सबकी संस्कृति, सम्मान, मानवाधिकार की रक्षा की जाएगी। आज हम संविधान को ख़त्म होने के डर की बात करते हैं क्योंकि कुछ लोग व संगठन संविधान संशोधन द्वारा धर्मनिरपेक्षता, सांस्कृतिक स्वतंत्रता, समता को ख़ारिज करने की कोशिश कर रहे हैं। चर्चा के दौरान प्रतिभागियों ने धर्म और संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा किया। चर्चा के दौरान कुछ प्रतिभागियों ने फेसबुक और व्हाट्सएप द्वारा आने वाले कई धार्मिक, विभेदकारी सांप्रदायिक बातों का जिक्र किया इस पर आदित्य कुमार भारती ने कहा कि फेसबुक व्हाट्सएप पर आने वाले बातों को बिना सोचे समझे स्वीकार नहीं करना चाहिए। अपनी मान्यता को फैक्ट  चेक कर ही स्वीकार करनी चाहिए। युवा क्षमता वर्धन कार्यशाला के अंत में कनक्लूड करते हुए राजीव कुमार सिंह ने कहा कि धर्म और संस्कृति दो अलग-अलग चीज है। धर्म और मान्यता थोड़े समय के प्रभाव होते हैं जबकि संस्कृति लंबे समय के भू संरचना,पर्यावरण, व्यापार व आदान-प्रदान से बनती है। अधिशंख हिन्दुओं जलाकर किया जाता है परंतु बहुत सारे हिंदुओं का अंतिम संस्कार दफनाकर भी किया जाता है। यह विविधता संस्कृति के कारण है ना कि धर्म के कारण। इसी प्रकार की विविधता दुनिया भर के तमाम धर्म में पाई जाती है। इंडोनेशिया के मुसलमान और अरब के मुसलमान की संस्कृति एक नहीं है। इसलिए हम धर्म और संस्कृति के आधार पर विभेद कर खुशहाल समाज नहीं बना सकते। जिस राज्य सत्ता ने समन्वय की संस्कृति को अपनाया है वह हमेशा आगे बढ़ा है। इसलिए हमारे लिए भी  मूल्य -समता, बराबरी, लोकतंत्र, वैज्ञानिकता, धर्मनिरपेक्षता और सबके लिए न्याय होनी चाहिए।

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